सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Thursday, September 23, 2010

सी डब्ल्यू जी की सी.आई.डी. जाँच – एक्सक्लूसिव इसी ब्लॉग पर!

(बारिश का अंधेरा, हल्की बूँदा बाँदी, सड़क पर जमा हुआ पानी, कीचड़ और टूटी हुई सड़कों पर तेज़ी से दौड़ती हुई एक बड़ी जीप सड़क ख़ाली होने के बावजूद भी ज़ोर से ब्रेक लगाकर चींईईईईईईईई की आवाज़ के साथ रुकती है और उससे बाहर निकलते हैं अभिजीत, दया, प्रद्युम्न और पूरी टीम.)

दयाः किसने फोन किया था सी आई डी को!
एक पहरेदारः (किसी दूसरे की डब की हुई आवाज़ में)सलाम साब! मैंने ही आपको फोन किया था. इधर आइए लाश यहीं पड़ी है.
(सभी पहरेदार के साथ आगे बढते हैं)
अभिजीतः (डाँटते हुए) तुम यहाँ सो रहे थे! तुम्हारे होते यह लाश यहाँ कैसे आई. किसकी है यह लाश!
पहरेदारः सर मैं तो कहीं नहीं गया ड्यूटी छोड़कर. बस दो मिनट के लिए पेशाब करने गया था.
दयाः साले ड्यूटी पर ही पेशाब लगती है तुझे और इधर तेरे पीछे किसी का ख़ून हो गया.
(तब तक ज़मीन पर पड़ी हुई लाश, दिखाई दे जाती है. लाश देखते ही सारे ऑफिसर अपने अपने जेब से सफ़ेद दस्ताने निकालकर पहनने लगते हैं)
अभिजीतः (पहरेदार से) तेरी ड्यूटी कितने बजे शुरू होती है? और तूने लाश कब देखी?
पहरेदारः (डरता हुआ) सर! मैं रात दस बजे ड्यूटी पर आया और आते ही पूरे एरिए का मुआयना किया. फिर जाकर अपने ड्यूटी रूम में बैठ गया. रात बारह बजे तक मैं हर घंटे घूमकर देखता रहा. बारह बजे, जब मैं इधर आया तो मुझे कुछ दिखाई दिया यहाँ पर जो पहले नहीं था. पास आकर देखा तो यह लाश पड़ी थी.
(अचानक उधर से विवेक के चीखने की आवाज़ आती है)
विवेकः सर! यह देखिए! लाश की जेब से यह आई कार्ड मिला है. इसपर नाम की जगह लिखा है सी.डब्ल्यू.जी 2010.
अभिजीतः देखना विवेक, कोई फोटो लगी हऐ क्या?
विवेकः सर! फोटो की जगह एक शेर की तस्वीर लगा रखी है इसने. ये कैसा आई डी कार्ड है?
प्रद्युम्नः (अपनी उँगली नचाकर गोल गोल दायरा बनाते हुए) यह नाम कुछ सुना सुना लगता है. कहाँ सुना है...कहाँ सुना है... याद करने दो. ह्ह्ह्ह्हहाँ ! अब याद आया. यह लाश कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 की है. वही कहूँ कि यह नाम सुना सुना लगता है. फ्रेडरिक्स लाश की तस्वीरें खींच लो हर तरफ से!
फ्रेडरिक्सः (डरकर मुँह बनाता हुआ) सर जब पहरेदार ने कुछ नहीं देखा, तो मुझे ये भूत का या आत्मा का काम लगता है. और आत्मा की फोटो नहीं आती.
प्रद्युम्नः फ्रेडरिक्स! तुम अपना काम करो वर्ना तुम्हारी बीवी को बताना पड़ेगा कि तुमने चॉकलेट खानी फिर से शुरू कर दी है.
फ्रेडरिक्सः सर प्लीज़! मेरी बीवी को मत बताइएगा, वर्ना रात को सारे बरतन मुझे ही साफ करने पड़ेंगे.
अभिजीतः कुछ और मिला लाश की जेब से!
ताशाः सर लाश की पूरी जेब ख़ाली है. पर्स में भी सिर्फ आई कार्ड ही मिला है. हाथ में घड़ी छोड़ दी है ख़ूनी ने.
प्रद्युम्नः घड़ी को ग़ौर से देखो ताशा. अगर घड़ी रुकी हो तो हमें क़त्ल के समय का पता चल सकता है.
ताशाः सर! ये घड़ी भी अजीब है. इसमें सिर्फ काउण्ट डाउन चल रहा है और वो भी दिनों में. डायल पर लिखा है डे’ज़ लेफ्ट और नीचे घड़ी बता रही है 15.
दयाः शायद इसीलिए क़ातिल ने यह घड़ी लाश के हाथ में छोड़ दी है. यह उल्टी घड़ी क़ातिल के किस काम की.
प्रद्युम्नः लगता है किसी ने पैसे के लालच में ख़ून किया है. इसे लूटकर, इसकी लाश यहाँ सुनसान में डाल गया.
अभिजीतः ए सी पी साहब! लाश के बदन पर किसी मार पीट या चोट के निशान नहीं हैं. ज़मीन पर भी ख़ून के या हाथापाई के निशान नहीं दिखते हैं.
प्रद्युम्नः (शून्य में सोचते हुए अपनी उँगलियाँ नचाते हुए) नहीं अभिजीत, यह कोई गहरी साज़िश है. क़त्ल कहीं और हुआ और लाश यहाँ डाल दी गई. और क़ातिल ने लाश को डालने के लिए बहुत कम समय लिया है. जबतक पहरेदार पेशाब करके वापस आया, क़ातिल अपना काम कर चुका था.
अभिजीतः फ्रेडरिक्स तुम लाश को डॉ. साळुंके के पास भिजवाओ और लाश की तस्वीरें लेकर आस पास की लोकैलिटी में पूछ्ताछ करो,किसी ने इस लाश को यहाँ लाते हुए देखा है किसी को.
प्रद्युम्नः यह भी पता लगाओ कि किसी थाने में इसके लापता होने की खबर लिखवाई गई है क्या!
++

(फॉरेंसिक लैब का दृश्य, जिसमें डॉ. साळुंके और उनकी सहयोगी डॉ. तारिका लाश पर झुके हैं, आस पास कुछ रंगीन लिक्विड्स काँच के बीकर में उबल रहे हैं और उनसे धुँआ निकल रहा है, अचानक तेज़ चाल से एसीपी का प्रवेश और उसके साथ पूरी टीम, अभिजीत तिरछी नज़रों से तारिका को घूर रहा होता है.)

प्रद्युम्नः साळुंके! कुछ बात हुई इस लाश के साथ तुम्हारी. कुछ कहा इस लाश ने.
साळुंकेः बॉस! इसे लाश कहकर तुम इसकी तौहीन कर रहे हो. यह एक ज़िंदा जिस्म है, बस कोमा में है और इसकी धड़कनें इतनी धीमी हैं कि तुम महसूस भी नहीं कर सकते.
प्रद्युम्नः क्या बकते हो!
साळुंकेः बकता नहीं बॉस, अपनी आँखों से देख लो.

(साळुंके लाश के ऊपर एक भारी भरकम कैमेरे के जैसा कोई यंत्र लगाता है, और कुछ प्लग कम्प्यूटर से जोड़कर सिर्फ एक बार एण्टर की दबाता है. यंत्र से एक चमकीली हरी लाल सी रोशनी निकलती है और धीमी गति से लाश तक जाती है. मॉनिटर पर एक ग्राफ बनने लगता है)

तारिकाः यह जो ग्राफ में रह रहकर जो पीक बन रही है ना, नॉर्मल ग्राफ से ऊपर, यह इस आदमी के दिल की धड़कन है. बस यही सोच लीजिए कि यह दिल नॉर्मल दिल की धड़कन से दस हज़ारवें हिस्से के बराबर धड़क रहा है.
अभिजीतः (तारिका को अजीब सी नज़रों से घूरता हुआ) तारिका जी आपको देखकर तो मुर्दों के दिल भी धड़कने लगते हैं.
साळुंकेः अभिजीत, यह मामला बहुत सीरियस है. इसके जिस्म पर अंदरूनी चोट के निशान मिले हैं. ख़ास कर दिल पर. और एक काग़ज़ का टुकड़ा भी मिला है, पर्स के अंदरूने हिस्से से चिपका हुआ, पर लिखावट नहीं पढी जा रही.
प्रद्युम्नः कैसे डॉक्टर हो तुम जब वो लिखाई नहीं पढ सकते. कोशिश करो.
(साळुंके उस कागज़ को एक वाच ग्लास पर रखता है और उसपर कुछ रंगीन पानी डालता है जेट से. फिर उस कागज़ को आँच पर सुखाता है और कैमेरे के क्लोज़ अप में कुछ अक्षर दिखने लगते हैं)

दयाः (पढने की कोशिश करते हुए) कुछ नम्बर हैं 114 ; 70000 और कुछ नाम हैं काल... आगे पता नहीं चल रहा.
अभिजीतः काल भैरव तो नहीं!
दयाः फटा हुआ है कागज़, नीचे लिखा है यमुना, कमिटी और इसी तरह के टूटे फूटेशब्द.
प्रद्युम्नः (उँगली गोल घुमाते हुए) कुछ तो गड़बड़ है... काल, कमिटी और यमुना... यह यमुना के ईलाके के पास का केस हो सकता है. बॉडी भी तो हमें वहीं से मिली थी.
अभिजीतः सर! यमुना के किनारे जो कॉलोनी बन रही है, वो इसी आदमी की है, कॉमन वेल्थ गेम्स 2010. आपको याद होगा कि मौक़ा ए वारदात पर पर इसी नाम के पोस्टर लगे हुए थे.
प्रद्युम्नः चलो ब्यूरो चल कर रेकॉर्ड चेक करते हैं.

(पूरी टीम फॉरेंसिक लैब से बाहर निकल जाती है.)

क्रमश:..........

18 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

यह टेलीकास्ट कब होगा भाई, रहा नहीं जा रहा है।

दीपक बाबा said...

आप भविष्यवक्ता तो नहीं ?


बढिया है.

kshama said...

Games kee to aapne kar dee aisi ke taisi...par ye kramsh: bada akhar gaya...chand minutes ka break len aur poora likh den,please!

ZEAL said...

Beautifully written post. The thrill is maintained throughout , which leaves the reader curious.

मनोज भारती said...

चैतन्य भाई !!! आप तो एक अच्छे नाटककार भी निकले । स्क्रिप्ट बेहद उम्दा है । नाटक के सभी तत्वों का इसमें समावेश है । बस इस क्रमश: ने विघ्न खड़ा कर डाला ...कब डाल रहे हो अगली पोस्ट ???

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

Bahut khoob !

मनोज कुमार said...

आपके नाटक के स्क्रिप्ट लिखने की बात पटना का रहने वाला ही नहीं, बाहर के लोग भी जानते हैं। आज आपने उसका बेहतरीन उदाहरण पेश कर दिया। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आभार, आंच पर विशेष प्रस्तुति, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पधारिए!

अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्‍ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

रचना दीक्षित said...

बहुत मस्त जा रही है खोज और उसकी दिशा, पर मैं इस पर प्रकाश डालूंगी मेरी नज़र से. भाई मैं भी सी आई डी की मेंबर हूँ. मेरी खोज में जो तथ्य सामने आये हैं वो रखती हूँ. ये हत्या सही है और देश के हक में है और एक सच्चे देश भक्त होने के कारण मैं इस हत्या का समर्थन करती हूँ क्योंकि मैं जानती हूँ की इस बार हर इवेंट में गोल्ड सिल्वर और ब्रोंज हमें ही लाना है और इसके लिए दहशत फैलाना जरुरी है.क्योंकि जितनी ज्यादा दहशत, उतने कम देश, जितने कम देश, उतने कम खिलाडी जितने कम खिलाडी उतना आसान जीतना. सो हम किसी को आने ही नहीं देंगे. देखें कौन हम से एक भी मेडल ले जा पाता है. अब ऐ सी पी प्रद्दुम्न को बताना है की मेरी जाँच की दिशा सही है या गलत

राजेश उत्‍साही said...

सीआईडी के निर्माताओं से ऑफर लेटर आता ही होगा। पर इसको टेलीकॉस्‍ट तो 3 तारीख के पहले ही होना पड़ेगा न। वरना स्‍टोरी पुरानी हो जाएगी। अच्‍छा किया जो आपने ब्‍लाग पर लगा दी। यहां मेरे पास तो टीवी नहीं है,पर पढ़ते हुए ऐसा लगा टीवी पर ही देख रहा हूं।
बधाई। तो बम्‍बई यानी मुंबई कब जा रहे हैं। हमारी जुगाड़ भी लगाइएगा।

संजय @ मो सम कौन... said...

वाह ही वाह, इसमें एक्शन भी है, इमोशन भी है, ड्रामा भी है पर ये क्रमश: काहे है जी?

सम्वेदना के स्वर said...

@मो सम कौनः
ताकि ये कहानी वीरू की कहानी से अलग लगे!!

संजय @ मो सम कौन... said...

हा हा हा,
सही पकड़ा सर।

अब मैगी की ऎड याद आ गई,
’Its different'
yess, its different.

Apanatva said...

kramashah bharee pad raha hai chaitny..........
:-(

उम्मतें said...

अंदाज़े बयान बहुत पसंद आया :)

आगे देखे सी.आई.डी.किस निष्कर्ष में पहुंचती है !

VICHAAR SHOONYA said...

शानदार और मजेदार.

soni garg goyal said...

सी आई डी कभी नहीं देखती क्योंक बेचारो कि लाश हमेशा खो जाती है !लेकिन आज का ये सी आई डी अच्छा लगा चैतन्य भाई इतना पोस्टमार्टम भी मत करिए बेचारो का .......ये तो वैसे भी मर चुके है !

Unknown said...

iski teecasting ka besabri se intzar rahega- vinod

Unknown said...

aakhir kab ho raha hai telecast ?

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